युवाचार्य पूज्य श्री महेंद्र ऋषिजी म. सा.

युवाचार्य पूज्य श्री महेंद्र ऋषिजी म. सा. - सक्षिप्त जीवन परिचय


 

युवाचार्य महेंद्र ऋषि जी महाराजसाहब का जन्म 5अक्टूबर 1967 को ग्राम- चाकण, तहसील- खेड़, जिला- पुणे, राज्य - महाराष्ट्र में पिताश्री श्रीमान स्वार्थी लाल जी भटेवरा के घर आंगन एवं माता श्रीमती लीलाबाई भटेवरा की रत्न कुक्षि से हुआ। आपका जन्म नाम महेंद्र रखा गया परंतु परिवार जन प्यार से आपको मंजू बुलाते थे। आप के दो बड़े भाई श्री राजेंद्रजी श्री संजयजी एवं दो छोटे भाई श्री अभयजी, श्री अजयजी भटेवरा हैं एवं एक बहन सुविधा जी भी है। इस तरह आपका धर्मनिष्ठ भरा पूरा परिवार रहा है।

बचपन से ही आपका अपनी माता श्री के साथ स्थानक में जाना होता रहा, फल स्वरुप आप साधु संतों के संपर्क में भी बचपन से ही रहे। जब आप की उम्र मात्र 7 वर्ष की रही होगी आपको आचार्य गुरुदेव पूज्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज साहब का सानिध्य मिला और तब आपको वैराग्य भाव जागृत हो गए। आपने गुरुदेव की उंगली ही नहीं हाथ थाम लिया। छोटी सी उम्र में धर्म का ज्ञान, आगम का ज्ञान अर्जित करना शुरू कर दिया और 6 वर्ष तक वैराग्य काल में रहकर आपने सभी तरह का ज्ञानार्जन गुरुदेव से प्राप्त किया।

आचार्य पूज्य श्री आनंद ऋषि जी के बगीचे की नई पौध विकसित होने लगी और एक समय ऐसा आया कि गुरुदेव की पारखी नजरों ने आपको जाना, पहचाना और (महेंद्र )मंजू कुमार से *महेंद्र ऋषि बना दिया। वह स्वर्णिम दिवस 3 फरवरी 1982 को पुणे स्थित नेहरू स्टेडियम में आपके सांसारिक जीवन से संयमित जीवन की ओर प्रवेश का दिन था। गुरुदेव आचार्य पूज्य श्री आनंद ऋषि जी ने आपको संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी, अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं का ज्ञान अर्जन करवाया। अर्जित ज्ञान को अपने प्रवचनों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने की वाक कला भी आपने गुरुदेव से ही सीखी। आप अपने प्रवचन का प्रारंभ भगवान की वाणी, शास्त्र की गाथाओं का उल्लेख करते हुए ही करते हैं यह आप की विशेषता है। गायन कला भी आपने गुरुदेव से हासिल की, वे मधुर कंठ के धनी और गायन की समझ के महारथी थे*।

आपके कवित्व एवं व्यक्तित्व में आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज साहब के अनेक गुणों की झलक दिखलाई प्रतीत होती है आप मधुर वक्ता मिलनसार मधुर कंठ के धनी रहे हैं। जिस दिन से आपने गुरुदेव का हाथ थामा उसी दिन से आप उन्हें अपना माता-पिता, सखा, और भ्राता ही मानते रहे और जिस दिन आपके गुरु आचार्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज साहब इस संसार को छोड़कर स्वर्गस्थ हो गए, उसी समय से आपने निरंतर,सतत पिछले 31 वर्षों से प्रत्येक शनिवार को मौन साधना रखते हैं। और करीब 13 वर्षों से सतत, निरंतर एकासन के एकांतर भी कर रहे हैं।

आपके एक शिष्य हैं पूज्य श्री हितेंद्र ऋषि जी महाराज साहब जो कि आपके सांसारिक मित्र भी रहे हैं और संयमित जीवन में भी आपके साथ ही आपके शिष्य बन मित्रता को भी निभा रहे हैं। आप दोनों की विद्वता और सादगी की अनुपम मित्र जोड़ी सर्वत्र पहचानी जाती है।

विचारों की दृढ़ता, भीतर- भाव एकरूपता, समत्व- भाव और सरलता, संयम में सजगता, वाणी में मधुरता, मुख्य मंडल की प्रसन्नता, व्यवहार में विनम्रता, ज्ञान की परिपक्वता, आपकी योग्यता गुणवत्ता एवं अनेक सद्गुणों के फल स्वरुप आपको संघ समाज के द्वारा कई पदों से विभूषित किया गया। जिन शासक प्रभावक, श्रमण संघीय मंत्री, विदर्भ शिरोमणि, प्रज्ञा महर्षि, आगम रत्नाकर।

प्रवर्तक पूज्य श्री कुंदन ऋषि जी महाराज साहब की शीतल छाया एवं मंगल कामना व सद प्रेरणा तथा पूज्य श्री आदर्श ऋषि जी महाराज साहब की सद इच्छा से वर्तमान आचार्य ध्यान योगी डॉ. शिव मुनि जी महाराज साहब के द्वारा *इंदौर स्थित दशहरा मैदान में लगभग 100000 से भी अधिक अनुयायियों एवं 500 से अधिक साधु - साध्वियों की उपस्थिति में युवाचार्य पद से नवाजा और चादर उड़ाई गई*। पूरा पंडाल जयकारों और जयघोषों से गूंज उठा। वह एक अविस्मरणीय स्वर्णिम दिवस 29 मार्च 2015 था। वर्तमान आचार्य श्री शिव मुनि जी महाराज साहब के साथ आपने चार चातुर्मास साथ करने का सानिध्य भी प्राप्त कियाहै इंदौर, सूरत, उदयपुर, और पुणे।

आपके द्वारा प्रमुख साहित्य संपादन निम्न है: आनंद स्वर लहरिया- गीत/ आनंद की सरगम - गीत/ आनंद के स्वर - गीत/ सुमिरन जिनेश्वर का- प्रवचन / गुरु आनंद प्रसादी- दोहे /आनंद स्त्रोत महक- थोकड़े इत्यादि प्रमुख रहे हैं।

उम्र के 56 वर्ष में आप प्रवेश कर रहे हैं इस अवसर पर संपूर्ण संघ, समाज और परिवार यही भावना रखता है कि आप स्वस्थ और प्रसन्न तो रहे ही साथ ही जिनवाणी को अपने मुखारविंद से पल्लवित एवं सुवासित करें और श्रमण - श्रमणी संघ को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाएं।


 

लेखक:- सुरेन्द्र मारू, इंदौर (+91 98260 26001)

 

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