भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जैन समाज का योगदान
अनिल कुमार जैन, अहिंसा फाउंडेशन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्राम्भ 1857 की जनक्रांति से माना जाता है। 1857 से 1947 के मध्य के 90 वर्षों में ना जाने कितने शहीदों ने अपनी शहादत देकर आजादी के वृक्ष को जीवंत रखा। ना जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने-अपने खून से क्रांति ज्वाला को प्रज्वलित रखा और ना जाने कितने स्वतंत्रता प्रेमियों ने जेलों में बंद रह के दारुण यातनाएं सही। ऐसे व्यक्तियों केअवदान को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए जिन्होंने जेल के बाहर रहकर भी स्वतंत्रता के वृक्ष की जड़ों को मजबूती प्रदान करी। आजादी के बाद कुछ का ही इतिहास लिखा जा सका। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शहीदों पर, सेनानियों पर बहुत कुछ लिखा गया परंतु जैन समाज के योगदान पर ज्यादा चर्चा नहीं हो पाई। जैन समाज में भी, इतिहास लेखन के प्रति उदासीनता ही रही।
दिगंबर समाज के पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने स्थिति को समझा और उन्हीं की प्रेरणा से स्वर्गीय डॉक्टर कपूरचंद जैन एवं उनकी धर्मपत्नी डॉक्टर ज्योति जैन ने अभय सागर जी मुनि श्री के सानिध्य में इस विषय पर एक ऐतिहासिक संकलन “स्वतंत्रता संग्राम में जैन“ नाम से पुस्तक में प्रकाशित किया। डॉक्टर ज्योति जैन जी से इस विषय पर हाल में, मेरी कई बार चर्चा हुई। उनसे पता लगा कि, जैन समाज के स्वतंत्रता आंदोलन में त्याग और बलिदान पर काफी सारी जानकारी एवं दस्तावेज अभी भी उनके पास में हैं, जो श्री कपूरचंद साहब की अकाल मृत्यु के कारण प्रकाशित नहीं हो पाए हैं। उनके द्वारा दी गई जानकारी और दस्तावेजों से पता लगता है, कि स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मा वलंबियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। अनेक जैन शहीदों नेअपना बलिदान देकर आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया तो अनेक ने दारुण यातनाएं सही। अनेक माताओं की गोद सुनी हो गई तो अनेक बहनों के माथे का सिंदूर धूल गया। ऐसे लोगों का भी बहुत योगदान रहा जिन्होंने बाहर से स्वतंत्रता के आंदोलन को सशक्त बनाया। जेल गए व्यक्तियों के परिवारों का भरण पोषण की व्यवस्था की। जैन समाज धनिक समाज रहा है, अतः जितनाआर्थिक सहयोग स्वतंत्रता आंदोलन में इस समाज ने दिया शायद ही किसी और समाज ने दिया हो।
जैन समाज के स्वाधीनता सेनानियों के बारे में जो भी जानकारी संकलित हो पाई है, उससे पता लगता है कि 5000 से ज्यादा लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी सक्रियता के साथ हिस्सा लिया। 2500 हजार अधिक स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल की यात्राएं करी। 15 से 20 जैन स्वतंत्रता सेनानी या तो अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हुए या फांसी पर लटका दिए गए | भगत सिंह एवं चंद्रशेखर आजाद जैसे अनेक वीर अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी हमारे समाज में भी हैं। उनमें से, जिनके बारे में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है, उन सभी अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए, यहां उल्लेख कर रहा हूँ। हुकुम चंद जैन ( हांसी, हरियाणा ), फकीर चंद जैन ( हांसी, हरियाणा ), अमरचंद बांठिया ( ग्वालियर ) मोतीचंद शाह ( सोलापुर ), सिंगरी प्रेम चंद जैन( दमोह ), वीर साताप्पा ( बेलगांव ), उदय सिंह जैन ( मंडला ), साबुलाल जैन ( सागर ), जया वती संघवी (अहमदाबाद ), नाथा लाल शा ह (अहमदाबाद ),अन्ना पत्रावले ( सांगली ), मगन लालओसवाल ( इंदौर ), भूपाल (कोल्हापुर ), कांधी लाल जैन ( जबलपुर ) मुलायम चंद जैन ( जबलपुर ), चौधरी भैयाला ल ( दमोह ), चौथमल भंडारी ( उज्जैन ), भूपाल पंडित (हैदराबाद ), भार मल जैन ( कोल्हापुर ), हरिश्चंद्र जैन ( परभणी, महाराष्ट्र ) ।
जैन पत्र एवं पत्रिकाएं भी राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए और स्वतंत्रता की भावना जागृत करने में पीछे नहीं रही थी। अनेक जैन समाज के पत्रों एवं पत्रिकाओं ने आजादी के आंदोलन को प्रखर बनाने के लिए विशेषांक निकालें और स्वदेशी भावना से प्रेरित विज्ञापन एवं लेख छापे। इन पत्र-पत्रिकाओं में, गुजराती का जैन दिवाकर ( 1875, श्री छगनलाल,अहमदाबाद ), जैन सप्ताहिक ( 1884, पंडित जियालाल, फरुखनगर ), उर्दू में जियालाल ( फरुखनगर ), जैन बोधक ( हीराचंद नेमचंद दोषी, 1884, मराठी गुजराती हिंदी संस्करण सोलापुर ), जैन मित्र ( 1900 पंडित परमेशटी दास ) जैन गजट (1895, दिगंबर जैन महासभा ), जैन प्रदीप (श्री ज्योति प्रसाद जैन उर्दू देवबंद ), जैन प्रकाश ( नवंबर 1930, स्वाधीनता पर विशेष 100 पृष्ठों का हिंदी एवं गुजराती में राष्ट्रीय अंक निकाला ), जैन संदेश ( मथुरा, 23 जनवरी 1947 स्वाधीनता आंदोलन पर विशेषांक ), ओसवाल (1921, जोधपुर ), अनेकांत ( दिल्ली ), वीर ( दिल्ली ), जैन महिला दर्श (1924, लखनऊ ) जैन शिक्षण संदेश ( 1937, ब्यावर, राजस्थान ) आदि अति उल्लेखनीय एवं सराहनीय नाम है।
दिगंबर जैन आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज अपने लेख "स्वतंत्रतासं ग्राम में जैन रण बांकुरे का रहा महत्व पूर्ण योगदान" में लिखते हैं, ब्रिटिश पार्लिया में एवं लंदन स्थित कामन इंडिया हाउस की लाइब्रेरी में रखी पुस्तक में उल्लेखित है कि स्वतंत्रता संग्राम में सभी धर्मों संप्रदायों के कुल 732785 लोग मारे गए। देश के लिए यह बलिदान देने वालों में 4500 से लेकर 5000 तक की संख्या में महिला पुरुष जैनथे। जब ग्वालियर के राजा शहर छोड़कर भाग गए थे, उस वक्त खजांची का कार्य कर रहे जैन समाज के सेठ अमर चंद बांठिया ने झांसी की रानी की सेना को 4 माह तक अपने कोष में से वेतन दिया था। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के लिए अपना खजाना खोल देने वाले भामाशाह भगवान महावीर की अनुयायी थे। भामाशाह का बेटा सुंडा भी उदयपुर में मुगलों के खिलाफ महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था। दिगंबर आचार्य नेमी सागर जी महाराज, दीक्षा से पूर्व, 1931 में महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े और 11 माह लाहौर जेल में रहे।
आजाद हिंद फौज में भी जैन समाज की महत्वपूर्ण भूमिका थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निजी चिकित्सक रहे, कर्नल डॉक्टर राजमल कासलीवाल अपनी अंग्रेज सेना की नौकरी छोड़ कर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे। बर्मा में व्यापार के लिए गए एक विख्यात जैन उद्योगपति श्री चतुर्भुज सुंदर जी दोशी एवं उनके छोटे भाई श्री मणिलाल दोशी नेता जी के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर आजाद हिंद फौज में शामिलहो गए। नेताजी की आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजीमेंट में, श्रीमती लीलावती जैन एवं रमा जैन ने नेतृत्व प्रदान किया।
वर्धा में महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने वाली महिलाओं में बहुत बड़ी संख्या में जैन महिलाएं भी थी। प्रमुख नाम जिनके बारे में जानकारी लेती है, वह इस प्रकार है। कमला देवी ( ललितपुर ), अंगूरी देवी ( आगरा ), गोविंद देवी ( कोलकाता ), गंगाबाई जी ( कानपुर ), चमेली जी ( दिल्ली ), प्रेम कुमारी जी ( वर्धा ), राजमती जी पाटिल ( सांगली ), विद्यावती ( नागपुर ), सुंदर देवी ( जबलपुर ), उलाल (कर्नाटक ) कि जैन धर्म अनुयाई रानी अबाका का नाम स्वाधीनता संग्राम के पहले जैन सेनानी की तरह लिखा जाता है। रानी अबाका ने वीरता से पुर्तगीज सेना के साथ 40 वर्ष तक जंग लड़ी और उनके उपनिवेशवाद को कड़ी चुनौती दी और परास्त किया।
जैन संत श्रीमद राज चंद्रा एक ऐसा नाम है जिन्होंने गांधी जी की जीवन शैली ही बदल दी। महात्मा गांधी ने अपनी लेखनी से कहा है, "जैन संत राज चंद्रा ने गुरु की तरह उनका मार्गदर्शन किया और उन्हें, भारत के स्वाधीनता संग्राम में पूर्ण अहिंसा के मार्ग पर अग्रसर किया। भारत के संविधान निर्माण में भी जैन समाज ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। संविधान सभा के 5 जैन सदस्यों-श्री कुसुम कांत जैन, श्री बलवंत सिंह मेहता, श्री रतनलाल मालवीय, श्री भवानी अर्जुन खीमजी, चिमन भाई शाह की सदस्यता के प्रमाणिक जानकारी मिलती है।
समस्त जैन समाज के लिए गर्व का विषय है कि, देश में जिस समाज को धनाढ्य व्यवसाई और उद्योगपतियों का समाज समझा जाता है, उसने भी सक्रियता के साथ, तन-मन-धन से भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी। स्वाधीनता दिवस 2022, के मांगलिक अवसर पर हम सब, अमर जैन वीर स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हैं एवं श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
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