Ostraji Jain Tirth - Bhopalgarh
Rajasthan
It is 1200 years old ancient temple which has been recently reconstructed by Vallabh Samuday Gachdipatti Aacharya Vijay Dharamdhurender Surishwar ji Maharaj. The focal deities worshiped at this Teerth are of Bhagwan Ostra Parshwanath , Sarvatobadhra Parshwanath and family of Batuk Bhairav Dev .It is believed Bhairav Dev Ji resides here with his complete family.
The teerth has best of the facilities for visitors which include Rest Houses, Dining Hall etc. This is one of the best located Jain teerth with natural & serene environment for meditation. One can experience the divine presence.
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संक्षिप्त परिचय : ज्यों ओसवाल वंश की जन्मभूमि ओसिया गाँव है त्यों ही ओस्तवाल वंश की जन्मभूमि ओस्तरा गाँव है। आज भी पुराने ओस्तरा में ओस्तवाल वंश के परम आराध्य देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ स्वामी जी, कुलदेव श्री सच्चिया देवी माताजी एवं श्री भैरवदेवजी के प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं। यह तीर्थस्थल पहले से ही महान् चामत्कारिक रहा है और आज भी इस तीर्थस्थल की छवि वैसी ही बनी हुई है। इस तीर्थ के जीर्णोद्धार की कहानी भी अपने आप में एक चमत्कार ही है। ईस्वी सन् 1997 फरवरी या मार्च मास में परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय धर्मधुरन्धर सूरीश्वर जी म.सा. अपने साथी मुनिराज श्री चिदानन्द विजय जी महाराज एवं मुनिराज श्री धर्मकीर्ति विजय जी महाराज के साथ पहली बार जब ओस्तरा गाँव के इस वीरान भूखण्ड पर पहुँचे थे तब उनको पहली बार तो रास्ते में और दूसरी बार श्री भैरवदेव दादा के सामने अत्यन्त मीठी तीव्र गंध की जैसी अनुभूति हुई थी वैसी गंध की अनुभूति उन्हें कभी नहीं हुई। वह गंध किस पुष्प की थी? वे आज तक समझ नहीं पाये। क्योंकि उस समय न तो वहाँ कोई पुष्प था, न ही कोई धूपबत्ती, अगरबत्ती। गंध कहाँ से आ रही थी? इसका निर्णय भी वे नहीं कर पाए। गंध की अनुभूति के साथ उसी दिन उन्हें दूसरी अनुभूति प्राप्त हुई जब वे श्री भैरवदेव दादा के पास खड़े-खड़े आराधना कर रहे थे तब उनके मन में अचानक भाव आया-जीर्णोद्धार करवाओ। उन्होंने उस भाव को सुना-अनसुना कर दिया और आराधना करते रहे। मगर जब दूसरी बार भी उनके मन में वही विचार आया तो उन्होंने कहा-बाबा। जीर्णोद्धार करवाना मेरे वश की बात नहीं है, कारण केवल इतना ही है कि मैं किसी से भी पैसे नहीं मांग पाता हूँ और जीर्णोद्धार के लिये तो मुझे जिन्दगी भर माँगते ही रहना पड़ेगा। हाँ, कार्य मैं करवा सकता हूँ। कुछ क्षणों के बाद उनकी ओर से उत्तर मिला- ‘काम तुम्हारा और दाम हमारा’ बस, इन अंजाने भाव शब्दों-वचनों पर उन्होंने भरोसा किया। परिणामस्वरूप आज इस तीर्थ पर जो कुछ भी है वह उन्हीं के दाम और काम का परिणाम है। हाँ, उन्होंने अनेक संघों, व कई-कई उदार व्यक्तियों को इस तीर्थ के साथ जोड़ा धन सहायक के रूप में और कार्य सहायक के रूप में।
जीर्णोद्धार के कार्य में आचार्य भगवंत की प्रेरणा नहींवत् ही रही। जब गुरुदेव श्रीमद् विजय धर्मधुरन्धर सूरीश्वर जी म. सा. यहाँ पर पहली बार पधारे थे, तब यहाँ खण्डहर, जीर्णशीर्ण पुरातन जिनालय का मात्र शिखर था और श्री बटुकभैरव देव जी परिवार सहित विराजमान थे मगर आज परमात्मा, गुरु, श्री सच्चियादेवी माता और श्री भैरवदेव जी की कृपा से तथा कई-कई संघों, ट्रस्टों एवं तीर्थभक्त उदार भाग्यवानों के उदार सहयोग से पुरातन जिनालय, नूतन जिनालय, सपरिवार बिराजित ओस्तरा बटुकभैरवदेव जी का शिखरबद्ध मंदिर, पहाड़ी पर सच्चियाय माता जी एवं चौसठ जोगिनी माता जी मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला, चित्रशाला, अतिथि भवन, साधु- उपाश्रय, साध्वी-उपाश्रय, जैन विद्याशोध संस्थान, श्रुत मंदिरम्, भैरव बाल क्रीड़ा उद्यान, पक्षी सेवा सदन, गैया मैया सदन, कार्यालय आदि विद्यमान हैं। इस तीर्थ भूमि पर शुरुआत से आज तक आने-जाने वाले समस्त तीर्थ यात्रियों के लिए निःशुल्क नवकारसी, मध्याह्न एवं सायंकालीन भोजन की सुन्दर व्यवस्था सुचारू रूप से उपलब्ध है। विजय धर्मधुरन्धर सूरीश्वर जी महाराज साहेब की प्रेरणा से निर्मित इस तीर्थ भूमि के विकास के निमित से अभी भीकई कार्य करवाए जा रहे हैं व कई कार्य करवाने हैं।
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Youtube Links
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Address : श्री ओस्तरा पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट
कार्यालय- ग्राम-ओस्तरा, तहसील-भोपालगढ़, जिला-जोधपुर (राज.) 342603
मो. 9950071209, E-Mil : shriostratirth@gmail.com
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