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श्रमण संघीय प्रवर्तक रमेश मुनि महाराज - संक्षिप्त जीवन वृत्त

 

 

प्रवर्तक रमेश मुनि जी महाराज का जन्म राजस्थान के जिला-बाड़मेर, तहसील-समदड़ी, ग्राम-मजल में पिताश्री श्रीमान बस्तीमलजी कोठारी के घर आंगि और माताश्री श्रीमती आशाबाई कोठारी की रत्न कुक्षि से 16 दिसंबर 1931 को बालक रतनचंद का जन्म हुआ। बालक रतनचंद पढाई के साथ साथ धीरे धीरे युवावस्था की और अग्रसर हो रहा था। एक दिन उनका विवाह भी हो गया। शादी के कुछ समय बाद ही आपको वैराग्य भाव जागृत हो गए। इसी बीच गुरुजी से 1 वर्ष शिक्षा ग्रहण की। और 09.05.1954 वैशाख सुदी सप्तमी को मेवाड़ भूशर्ण पंडित रत्न पूज्य गुरुदेव श्री प्रतापमलजी म. सा. ( दादागुरु : वादीमान मर्दक दादा गुरुदेव श्री नन्दलालजी म.सा., एवम परम्परा तथा उनके शीर्ष गुरू: श्रमण संघीय जैन दिवाकर पूज्य गुरुदेव श्री चौथमल जी म. सा. ) की निश्रा में झरिया ( बिहार ) में दीक्षित हो गए। आपके दीक्षा पाठ प्रदान गुरु पंडित रत्न पूज्य श्री जयंतीलालजी म. सा. ( गुजरात ) थे। शादी के पश्चात 2 वर्ष में ही दोनों पति-पत्नी दीक्षित हो गए।

आपके द्वारा गहन धार्मिक अध्ययन : जैन सिधाद्न्ताचर्या नाचायात हिन्दी (पाथर्डी बोर्ड, अहमद नगर ), सादहित्य रत्न, संस्कृत विशारद, जैनागम धर्म दर्शन एवम शैक्षणिक योग्यता: एम. ए. हिन्दी के साथ भाषा ज्ञान : हिन्दी, गुजराति, प्राकृत, अंग्रेजी, संस्कृत आदि का अध्ययन किया गया। आपकी लिखित सतत निरंतर चलती ही रहती थी आपके द्वारा 70 से अधिक लिखित प्रमुख सम्पादित साहित्य :

जैन दिवाकर संस्मरणों के आईने में / मेरा महावीर महान ज्ञानामृत - भाग – 5 / जिज्ञासा और समाधान – भाग – 3 / जो बोवे फल लेय - भाग – 2 / झाक जरा दर्पण मे, / आत्म दर्शन एकाचिंतन, / श्रमण संस्कृति का स्वर्णिम चिंतन / प्रज्ञा दर्शन / विचारों का गुलदस्ता / अटपटे प्रशन चटपटे उतर / चले सही पथ प्रताप / कथा कौमुदी - भाग - 22 एवम अन्य कई उत्कृष्ट / मार्मिक / दिल को छू लेने वाला साहित्य की रचना की गई।

संयम जीवन में आपके द्वारा लगभग 40-44 से भी अधिक दीक्षाएं प्रदान की गई।

कई उपाधियों से विभूषित-

आपको श्रमण संघीय प्रवर्तक पद 1983 में नासिक महारष्ट्र में सम्राट श्री आनंद ऋषिजी महाराज साहब के द्वारा प्रदान की गई। जोधपुर में मरुधरा भूषण, और चित्तौड़गढ़ में साहित्य मनीष, पद से विभूषित किया गया।

प्रज्ञा महर्षि की पदवी से भी आपको को सम्मानित किया गया।

संस्कार मंच प्रणेता सिद्धार्थ मुनि के शब्दों में - आपको हमेशा जोड़ने में विश्वास रखते थे। आपको द्वारा अपने शिष्यों को उदाहरण दिए जाते कि दो तरह के फल होते एक संतरा जो उपर से एक दिखाई देता है और अंदर से अलग - अलग और दूसरा खरबूजा जो उपर से अलग - अलग दिखाई देता है परंतु अंदर से एक है, अत: तुम खरबूजे की तरह बनो।

 सभी के प्रति आदर के भाव रखते थे। विनम्रता और मधुता आपको का विशिष्ट गुण था। उपाध्याय प्रवर श्री केवल मुनि जी से आपको चेहरा और गुण दोनों ही काफी मिलते थे।

 उपप्रवर्तक श्री चंद्रेश मुनि के शब्दों में – आपने संत की संतत्व, और संत की मर्यादा, संर् की सीमाओं में आबद्घ होकर भी जनमानस के भीतर श्रद्धा का सागर बहाया। संतत्व का गुण आपके तन – मन और व्यवहार में संपन्न था। सहिशीलता मानो शीतल पानी की तरह ठंडा। सभी के प्रति आदर के भाव रखते थे।

 आपका आिका विशिष्ट गुण - कहा करते थे कि तुम सबका सम्मान करोगे तुम्हे सम्मान की आवश्यकता निहीं रहेगी। तुम्हारी पहली हष्टि सम्यक है, क्रियाएं शुद्ध और निर्मल है तो तुम्हारे पास ब्यक्ति दौड़ा आएगा किसी को बुलाने की जरूरत नहीं।

आपके स्वयं के शब्द - अपने शिष्यों और श्रावकों के लिए -

मेरी आज्ञा में रहने वाले संत साध्वी इस परंपरा के गौरव की संप्रदाय में जरूर रहे लेकिन संप्रदायवाद कि बू नहीं फैलाएं। इसी में श्रमणत्व है साधुता है। संत समाज जिन शासन एवं श्रमण संघ की कीर्ति को फैलाएं। जीव दया, संघहित में साधुचित सहयोग प्रदान करें। फूट डालने विद्वेष फैलाने का ऐसा कोई कार्य न करें। श्रावक श्राविका साधु संतों की सेवा करें क्योंकि कि श्रावक श्राविका माता पिता तुल्य हैं। प्रदर्शन और आडंबर को अधिक महत्व ना दें, सुदर्शन और सादगी को श्रेय दें। और जीवन में तप, ज्ञान और संयम की आराधना करें।

आपका जीवि दर्पण के समान था। जो भी ब्यक्ति आप की शरण में आता वह सदा के लिए आपका हो जाता ज्ञान दर्शन, ज्ञान चरित्र और ज्ञान आराधना से जो जीवन ज्योति जगाई है वह युगों युगों तक निरंतर ज्वलिट ही रहेगी। आपके प्रेरणा से ही दलौदा स्थित महावीर स्वास्थ्य केंद्र पर मानव सेवा का कार्य गतिमान है, जहां 100 बैड के अस्पताल में वर्तमान में हर दिन अनेक लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मिल रही है। ट्रस्ट के द्वारा इसका संचालित होता है। आसपास के 80 गांवों के लोगों को यहां स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती है। डायलिसिस, सोनाग्राफी, आईसीयू और अन्य सुविधाएं दी जा रही है। साथ ही साधु संतो के व्यावच्च की समस्त व्यवस्थाएं उपलब्ध है।

जिनशान के इतिहास में आपका ब्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही जुड़ गया। रुग्णावस्था के कारण 16.10.2019 को सबेरे 6.45 के लगभग संथारा सहित आपने इस नश्वर शरीर को त्याग दिया, और अनंत यात्रा की और अग्रसर हो चले।

आप जहां कहीं भी हो आपकी कृपा और आशीर्वाद संघ, समाज, और परिवार पर बरसाते रहे। आपके पावन पुण्य स्मृति पर आपको हार्दिक श्रद्धा सुमन करते हुए आप श्री के पावन चरणों में सादर वंदन नमन


 

लेखक :- सुरेन्द्र मारू, इंदौर ( +91 98260 26001)

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